मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है और यह पितृ-मोक्ष व परम शांति देने वाली एकादशी मानी जाती है। 2025 में मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती और गुरुवायूर एकादशी तीनों ही 1 दिसंबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी।
विषय सूची
- मोक्षदा एकादशी क्या है?
- 2025 में मोक्षदा एकादशी कब है? (आज एकादशी है या नहीं)
- मोक्षदा एकादशी की पौराणिक व्रत कथा
- एकादशी व्रत विधि (स्टेप‑बाय‑स्टेप)
- मोक्षदा एकादशी का महत्व और लाभ
- गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी का संबंध
- गुरुवायूर एकादशी 2025 (केरल/दक्षिण भारत संदर्भ)
- आज का पंचांग (1 दिसंबर 2025 – संदर्भ)
- व्यक्तिगत अनुभव, मनोभाव और भक्तों के लिए सुझाव
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
मोक्षदा एकादशी क्या है?
मोक्षदा एकादशी वह तिथि है जो मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है और शास्त्रों में इसे पापों से मुक्ति और मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की विशेष पूजा, दीपदान, जप और व्रत रखा जाता है, साथ ही पितरों के उद्धार के लिए विशेष प्रार्थनाएँ की जाती हैं।
2025 में मोक्षदा एकादशी कब है? (आज एकादशी है या नहीं)
हिंदू पंचांग के अनुसार 2025 में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 नवंबर 2025 को रात 9:29 बजे शुरू होकर 1 दिसंबर 2025 को शाम 7:01 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के नियमानुसार, मोक्षदा एकादशी व्रत और गीता जयंती दोनों ही 1 दिसंबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। इस प्रकार, “आज एकादशी है?” प्रश्न का सीधा उत्तर ‘हाँ’ है।
1 दिसंबर 2025 को ही केरल के प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर में मनाई जाने वाली गुरुवायूर एकादशी भी मनाई जाएगी, इसलिए यह तिथि उत्तरी और दक्षिणी भारत दोनों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन जाती है।

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक व्रत कथा
कथा का मूल प्रसंग
पुराणों के अनुसार एक समय गोकुल या चंपक (चंपा) नामक नगर में वैखानस नाम का धर्मात्मा राजा राज्य करता था, जिसके राज्य में वेदों के विद्वान ब्राह्मण और न्यायप्रिय प्रजा रहती थी। एक रात राजा ने स्वप्न में अपने दिवंगत पिता को नरक में कष्ट भोगते देखा, जहाँ वे उससे प्रार्थना कर रहे थे कि “हे पुत्र, किसी तरह मुझे इस दुःख से मुक्त करवाओ।”
स्वप्न से जागने के बाद राजा के मन में भारी बेचैनी हुई और उसे लगा कि यदि वह अपने पिता को नरक से मुक्त न करा सके, तो उसका राजा और पुत्र होना व्यर्थ है। वह अपने दरबार के ब्राह्मणों और मंत्रियों के पास गया, स्वप्न बताया और पूछा कि ऐसा कौन‑सा उपाय है जिससे पूर्वजों को मुक्ति मिल सके।
पर्वत मुनि से मार्गदर्शन
दरबार के विद्वानों ने राजा से कहा कि पास ही पर्वत नाम के महर्षि का आश्रम है, जो भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं, उनसे अवश्य समाधान मिलेगा। राजा वैखानस वहाँ पहुँचा, दण्डवत प्रणाम किया और अपने पिता की दशा तथा मन की व्यथा सुनाई; तब मुनि ने ध्यान लगाकर योगबल से राजा के पिता के पूर्वकर्मों को जाना।
मुनि ने बताया कि पिछले जन्म में राजा के पिता ने कुछ ऐसे कर्म किए थे जिनके फलस्वरूप उन्हें नरक का भोग मिल रहा है, और उनकी मुक्ति के लिए किसी शक्तिशाली व्रत और पुण्य की आवश्यकता है। तब मुनि ने मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत राजा को बताया और कहा कि यदि इस दिन पूरे नियम से व्रत कर, भगवान विष्णु की पूजा करके, प्राप्त पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दिया जाए तो उन्हें नरक से छुटकारा मिल सकता है।
व्रत के प्रभाव से पितृ‑मोक्ष
महर्षि पर्वत के बताए अनुसार राजा वैखानस ने मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा, दिन भर भगवान दामोदर की पूजा, भजन, कीर्तन और दान‑पुण्य किया और अंत में उस व्रत का सारा पुण्य अपने पिता को समर्पित कर दिया। कथा के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से राजा के पिता नरक से मुक्त होकर दिव्य लोक में चले गए और राजा का मन भी शांति और कृतार्थता से भर गया।
इसी प्रसंग के कारण इस एकादशी को “मोक्षदा” अर्थात मोक्ष देने वाली एकादशी कहा गया और माना गया कि इस दिन किया गया व्रत अपने पितरों के साथ‑साथ स्वयं साधक के जीवन में भी आध्यात्मिक उन्नति का कारण बनता है।
क्षदा एकादशी व्रत विधि (स्टेप‑बाय‑स्टेप)
व्रत से एक दिन पहले (दशमी)
- दशमी तिथि की शाम से ही सात्त्विक भोजन लें और तामसिक वस्तुएँ (मांस, मदिरा, लहसुन‑प्याज आदि) पूर्ण रूप से त्याग दें।
- सोने से पहले संकल्प लें कि अगली सुबह एकादशी व्रत रखा जाएगा और शरीर‑मन को शुद्ध रखने का प्रयत्न किया जाएगा।
एकादशी की सुबह – मुख्य पूजन
- ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय के समय स्नान कर साफ, हल्के रंग के कपड़े पहनें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके संकल्प लें कि “आज मोक्षदा एकादशी व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करूँगा/करूँगी और इसका फल पितरों व समस्त जीवों के कल्याण हेतु समर्पित करूँगा/करूँगी।”
- घर में पूजा‑स्थान पर भगवान विष्णु के दामोदर रूप या श्रीकृष्ण के चित्र/प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध कर, फूलों से सुसज्जित करें और दीप प्रज्वलित करें।
- धूप, दीप, चंदन, अक्षत, तुलसीदल, पीले पुष्प, नैवेद्य और ऋतुओं के अनुसार फल‑मिष्ठान अर्पित करें, साथ में “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या अपने गुरुदेव द्वारा बताए विष्णु‑मंत्र का जप करें।
दिन भर के नियम
- व्रत करने वाला यदि सक्षम हो तो निर्जला या केवल जल/फलों पर रहकर उपवास रखे, अन्यथा कम से कम अन्न का त्याग अवश्य करे और बिना नमक या सिर्फ फलाहार से काम चलाए।
- दिन भर गीता पाठ, विष्णु सहस्रनाम, हरिनाम संकीर्तन या सरल भजन‑कीर्तन में समय बिताएँ और यथा‑शक्ति गरीब, गौ‑सेवा या अन्नदान करें।
रात्रि पूजा और जागरण
- संध्या समय पुनः दीप‑धूप दिखाएँ, आरती करें और यदि संभव हो तो परिवार सहित गीता के कम से कम एक‑दो अध्याय का पाठ करें, विशेष रूप से 2 (सांख्य योग), 12 (भक्ति योग) या 15 (पुरुषोत्तम योग) को प्राथमिकता दी जाती है।
- कई स्थानों पर रात्रि‑जागरण, भजन‑कीर्तन व हरिनाम संकीर्तन की भी परंपरा है, जो मन को अत्यंत निर्मल और भक्तिमय बना देती है।
द्वादशी तिथि पर पारण
एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद उचित समय पर व्रत का पारण (उपवास खोलना) किया जाता है, इसे ही “परायण” कहते हैं। पंचांगों में प्रातःकाल पारण का समय स्पष्ट दिया होता है; 2025 में कुछ स्रोतों के अनुसार पारण 2 दिसंबर 2025 की प्रातः 8:24 से 10:06 के बीच किया जा सकता है, जबकि द्वादशी 11:27 बजे तक रहेगी।
मोक्षदा एकादशी का महत्व और लाभ
- मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को जन्म‑मरण के चक्र से मुक्ति की दिशा में विशेष आध्यात्मिक बल मिलता है।
- इस एकादशी पर किया गया संकल्प और दान‑पुण्य पितरों तक पहुँचता है और उन्हें नरक या निम्न लोकों से छुटकारा दिलाने में सहायक होता है, जैसा कि राजा वैखानस की कथा में वर्णित है।
आधुनिक दृष्टि से देखें तो पूरे दिन साधना, संयम, ध्यान, पाठ और सेवा करने से मनोवैज्ञानिक रूप से भारीपन कम होता है, अपराध‑बोध या ग्लानि जैसे भाव हल्के होते हैं और एक प्रकार की “इमोशनल क्लीन‑अप” जैसा अनुभव होता है, जिसे शास्त्रों में “मोह का नाश” कहा गया है।
गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी का संबंध
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, ठीक इसी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश देना प्रारंभ किया था, इसलिए इसे “गीता जयंती” कहा जाता है। गीता को “मोक्षशास्त्र” माना जाता है, जो कर्म, ज्ञान और भक्ति के संतुलन से मनुष्य को अंततः मोक्ष की ओर ले जाती है, इसलिए जिस एकादशी पर गीता‑उपदेश आरंभ हुआ, उसी का नाम कालांतर में “मोक्षदा एकादशी” प्रसिद्ध हो गया।
2025 में गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी दोनों 1 दिसंबर को एक साथ आने से यह योग अत्यंत दुर्लभ और शुभ माना जा रहा है, और विद्वान विशेष रूप से इस दिन गीता पाठ, चर्चा और मनन का आग्रह कर रहे हैं।
गुरुवायूर एकादशी 2025 (केरल संदर्भ)
केरल के प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर गुरुवायूर में मनाई जाने वाली गुरुवायूर एकादशी भी वैष्णव परंपरा में बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है और यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। 2025 में गुरुवायूर एकादशी भी सोमवार, 1 दिसंबर को ही मनाई जाएगी, जब मंदिर दशमी की सुबह से द्वादशी की शाम तक विशेष रूप से खुला रहता है और भक्त पूरी रात्रि दर्शन और पूजा का लाभ लेते हैं।
पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 30 नवंबर रात 9:29 से 1 दिसंबर शाम 7:01 तक रहेगी, तथा गुरुवायूर मंदिर के लिए द्वादशी पारण‑समय 2 दिसंबर की सुबह 8:24 से 10:06 के बीच रखा गया है, जिसमें हरिवासर काल से बचना आवश्यक माना जाता है।
आज का पंचांग (1 दिसंबर 2025 – संदर्भ)
1 दिसंबर 2025 के पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि चल रही होगी, जिस पर मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती दोनों ही मनाई जाएँगी। पंचांग‑सूत्रों के अनुसार इस दिन एकादशी तिथि शाम 7:01 बजे तक रहेगी, सूर्योदय प्रातः लगभग 6:56 बजे और इसके बाद द्वादशी तिथि 2 दिसंबर को पूर्वाह्न तक चलेगी, जो पारण के लिए उपयोगी है।
कई ज्योतिषीय विश्लेषणों में बताया गया है कि 2025 में अधिमास के कारण वर्ष भर में कुल 26 एकादशियाँ पड़ रही हैं, जिससे मोक्षदा एकादशी जैसे व्रतों का धार्मिक महत्त्व और भी बढ़ा हुआ बताया जा रहा है।
व्यक्तिगत दृष्टि, भाव और भक्तों के लिए सुझाव
धार्मिक मान्यता का एक पक्ष यह भी है कि मोक्षदा एकादशी केवल किसी “अदृश्य लोक” में मोक्ष दिलाने के लिए नहीं, बल्कि दैनिक जीवन की उलझनों, अपराध‑बोध, पारिवारिक कलह और मानसिक बोझ से भी मुक्ति का अवसर देती है। जब कोई साधक पूरे सचेत भाव से अपने पितरों के लिए, परिवार के लिए और स्वयं के आंतरिक शुद्धिकरण के लिए व्रत रखता है, तो उसके भीतर एक नई जिम्मेदारी‑बोध और करुणा जन्म लेती है, जो आगे चलकर रिश्तों में भी गहराई और स्नेह बढ़ाती है।
आज के तेज़‑रफ्तार डिजिटल जीवन में दिन भर फोन‑डिटॉक्स, सोशल मीडिया‑ब्रेक लेकर गीता के केवल दो‑तीन अध्याय का अर्थ समझते हुए पढ़ना, मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी बहुत सुकून देने वाला अनुभव बन सकता है, और यही मोक्षदा एकादशी की “मोह‑नाशक” शक्ति का आध्यात्मिक‑साथ‑साथ व्यावहारिक रूप कहा जा सकता है।
FAQs – मोक्षदा एकादशी व्रत कथा और तिथि
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मोक्षदा एकादशी 2025 में कब है?
2025 में मोक्षदा एकादशी 1 दिसंबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी, जबकि एकादशी तिथि 30 नवंबर रात 9:29 से 1 दिसंबर शाम 7:01 तक रहेगी।
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क्या 1 दिसंबर 2025 को ही गीता जयंती भी है?
हाँ, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की इसी एकादशी को ही गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है और 2025 में यह तिथि 1 दिसंबर को पड़ रही है।
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मोक्षदा एकादशी की मुख्य व्रत कथा किस राजा से जुड़ी है?
इस एकादशी की पौराणिक कथा राजा वैखानस से जुड़ी है, जिन्होंने स्वप्न में अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा और मुनि के बताए अनुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत रखकर उन्हें मुक्ति दिलाई।
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मोक्षदा एकादशी पर क्या‑क्या नियम रखने चाहिए?
इस दिन तामसिक भोजन, नशा, क्रोध, झूठ और किसी भी प्रकार का हिंसक व्यवहार त्यागकर, यथाशक्ति उपवास, पूजा, गीता पाठ, दान‑पुण्य और जप करने की सलाह दी जाती है।
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क्या मोक्षदा एकादशी का व्रत बिना निर्जला भी हो सकता है?
जो व्यक्ति निर्जला व्रत रखने में सक्षम न हो, वह फलाहार, दूध या केवल हल्के सात्त्विक आहार पर रहकर भी व्रत कर सकता है, परंतु अन्न से यथाशक्ति बचना उत्तम माना गया है।
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गुरुवायूर एकादशी 2025 में कब है?
गुरुवायूर एकादशी भी 2025 में सोमवार, 1 दिसंबर को ही मनाई जाएगी और वहाँ के स्थानीय पंचांग अनुसार द्वादशी पारण 2 दिसंबर 2025 की सुबह 8:24 से 10:06 के बीच किया जाएगा।
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मोक्षदा एकादशी पर पितरों के लिए क्या विशेष करना चाहिए?
इस दिन व्रत रखने के साथ‑साथ भगवान विष्णु की पूजा कर, की गई साधना और दान‑पुण्य को पितरों को समर्पित करने, गंगाजल, तिल और जल से तर्पण करने तथा गौ‑सेवा या अन्नदान करने की परंपरा बताई गई है।
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“आज एकादशी है?” – 1 दिसंबर 2025 के लिए उत्तर क्या होगा?
हाँ, 1 दिसंबर 2025 को मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि दिन भर (शाम 7:01 तक) चल रही होगी, अतः उस दिन एकादशी व्रत रखा जाएगा।
